कभी-कभी भगवान को भी... स्थाई:- कभी-कभी भगवान को भी, भक्तोँ से काम पड़े। जाना था गंगा पार प्रभु, केवट की नाव चढ़े।। अवध छोड़ प्रभु वन को धाये, सियाराम लखन गंगा तट आये। केवट मन ही मन हरषाये, घर बैठे प्रभु दर्शन पाये। हाथ जोड़ कर प्रभु के आगे, केवट मगन खड़े। जाना था गंगा पार प्रभु, केवट की नाव चढ़े।। प्रभु बोले तुम नाव चलाओ, पार हमें केवट पहुँचाओ। केवट बोला सुनो हमारी, चरण धूली की महिमा भारी। मैं गरीब नैया मेरी, नारी ना होय पड़े। जाना था गंगा पार प्रभु, केवट की नाव चढ़े।। केवट दौड़ के जल भर लाये, चरण धोय चरणामृत पाए। वेद ग्रन्थ जिनके यश गावे, केवट उनको नाव चढ़ावे। बरसे फूल गगन से ऐसे, भक्त के भाग बढे। जाना था गंगा पार प्रभु, केवट की नाव चढ़े।। चाली नाव गंगा की धारा, सियाराम लाखन को पार उतारा। प्रभु देने लगे नाव उतराई, केवट बोला नहीं रघुराई। पार किया मैंने प्रभु तुमको, अब मोहें पार करें। जाना था गंगा पार प्रभु, केवट की नाव चढ़े।। ...