जोबन धन पांवणा दिन..... दोहा:- निवण बड़ी संसार में, नहीं निवे सो नीच। निवे नदी रो गूंदलो, भाई रेवे नदी रे बीच।। स्थाई:- गरब करे सो गिंवारा जोबन धन, पांवणा दिन चारा।। हाड माँस का बण्या पूतला, भीतर भरिया भंगारा। ऊपर रंग सुरंग चढ़ायो, कारीगर किरतारा, जोबन धन, पांवणा दिन चारा।। पशु चाम की बणत पनइया, नौबत बणे रे नंगारा। नर थारी चाम काम नहीं आवे, बल जल होवे रे अंगारा, जोबन धन, पांवणा दिन चारा।। दस माथा और बीस भुजा हा, पुत्र घणा ओ परिवारा। एड़ा-एड़ा जोध गरब में गलिया, लंका रा सिरदारा, जोबन धन, पांवणा दिन चारा।। ओ संसार ओस वाळो -पाणी, जाता नहीं लागे वारा। कहत कबीर सुणो भाई साधो ! हरी भज उतरो पारा, जोबन धन, पांवणा दिन चारा।। ✽✽✽✽✽ यह भजन भी देखे Jambh Naam Ke Hire Moti जम्भ नाम के हीरे मोती Babo Bholo Amlido बाबो भोलो अमलीडो Unh Ghar Jhaije Veran Neend उण घर जाइजे वैरण नींद Suta Re Wo To Jagho Neend Su सूता रे वो तो जागो नीं...