मनवा नहीं विचारी रे ( धुन:- दर्शण देता जाइजो जी )
स्थाई:- मनवा नहीं विचारी रे,
मनवा नहीं विचारी रे।
थारी म्हारी करतां ऊमर,
बीती सारी रे।।
गरभवास में रक्षा कीनी,
सदा बिहारी रे।
बाहर भेजो नाथ भगती,
करस्यूं थारी रे।।
बालपणे में लाड लडायो,
माता थारी रे।
तरुण भयो जब लागे घर की,
तिरिया प्यारी रे।।
पाछे तू माया में लिपट्यो,
जुड़े संजारी रे।
कोड़ी-कोड़ी खातिर लेतो,
राड़ उधारी रे।।
जो कोई बोले बात ज्ञान की,
लागे खारी रे।
जो कोई बोले भजन हरिरस,
देतो गाली रे।।
वृद्ध भयो जब कहन लगी यूं,
घर की नारी रे।
कब मरसी ओ डैण छूटे,
गैल हमारी रे।।
रुक गये कण्ठ देशों दरवाजा,
मच गई ध्यारी रे।
पूंजी थी सो भई बिरानी,
भयो भिखारी रे।।
कालूराम जी सीख दई सो,
लागी खारी रे।
अब चौरासी भुगतो बन्दा,
करणी थारी रे।।
✽✽✽✽✽
यह भजन भी देखे
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें