दासी देख ने दरसण दीजो
दोहा:- कृष्णा तो मत जाणियो, तों बिछड्यो मोहे चेन।
जैसे जल बिन मछली, वा तड़फ रही दिन रैन।।
स्थाई:- भमर भालो धणी हाथ में,
पेहऱण केसरियो बानो जी।
दासी जाण ने दर्शन दीजो,
परम नाम से लागी जी।।
आपरे कारणिये बाग लगावूँ ,
घूमण रे मिस आवो जी।
दासी जाण ने दर्शन दीजो,
परम नाम से लागी जी।।
रंग महल में झूला लगावूँ ,
झूलण रे मिस आवो जी।
दासी देख ने दर्शन दीजो,
परम नाम से लागी जी।।
उण्डा ओरा में ढालूं ढोलियो,
पोढण रे मिस आवो जी।
दासी जाण ने दर्शन दीजो,
परम नाम से लागी जी।।
ऊँचा ऊँचा होद चिणावूँ ,
नावण रे मिस आवो जी।
दासी जाण ने दर्शन दीजो,
परम नाम से लागी जी।।
खीर खाण्ड रा भोजन बणावूं ,
जीमण रे मिस आवो जी।
दासी देख ने दर्शन दीजो,
परम नाम से लागी जी।।
मथुरा वन में गायां चरावो,
मुरली री राग सुणावो जी।
दासी जाण ने दर्शन दीजो,
परम नाम से लागी जी।।
बाई मीरा री अरज विणती,
जग-जग चरणा राखो जी।
दासी देख ने दर्शन दीजो,
परम नाम से लागी जी।।
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