अगर है शौक मिलने का
स्थाई:- अगर है शौक मिलने का, तो हरदम लौ लगाता जा।
जलाकर खुद नुमाई को, भस्म तन पर लगाता जा।।
पकड़कर इश्क़ का झाड़ू, सफा कर हिजर-ए-दिल को।
दुई की धूल को लेकर, मुसल्लाह पर उड़ाता जा।।
मुसहल्ल फाड़ तसबी तोड़, किताबें ड़ाल पानी में।
पकड़ तू दस्त फिरस्तों का, गुलाम उनका कहता जा।।
न मर भूखा न रख रोजा, न जा मस्जिद न कर सजदा।
वजू का तोड़ दे कुंजा, शराब-ए-शौक पीता जा।।
हमेशा खा हमेशा पी, न गफलत से रहो इक दम।
नशे में सैर कर अपनी, खुद ही को तू जलाता जा।।
नहीं मुल्ला नहीं ब्राह्मण, दुई की छोड़ कर पूजा।
हुक्म है शाह कलन्दर का, अनल-हक़ तू कहता जा।।
कहे मंसूर मस्ताना, मैंने हक दिल में पहचाना।
वहीं मस्तों का मैखाना, उसी के बीच आता जा।।
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