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Shani Dev Katha शनि देव की कथा

          



   || श्री गणेशाय नमः ||
                                                 

शनेश्चर कथा प्रारम्भ Shani Dev Katha

           || चोपाई || 

सरस्वती सुमरुं मारी माय, गणपत लागूँ तोरे पाय। 
तो सुमिरयांसुखसंपतिथाय, गौरीसुत मोहिबुद्धि बताय।
गुरुप्रणाम करि शीश नवाऊं, शनिदेव की कथा बणाऊ। 

दोहा - आज्ञा भई गुरुदेव की लीन्हीं शीश चढ़ाय। 
कथा कहूं शनिदेव की, भाषा सरस बनाय। 
गुरु की आज्ञा पाय के चित में कियो विचार। 
कायस्थ जोरी जुगत सूं कथा, करो विस्तार। 

       || चोपाई ||

सुमिरुं देव शनिचर राजा, मन वांछित सारे सब काजा। 
सांचो देव शनिचर कहूँ, जेक पांव में सदा गहूँ। 
सुर तेतीस मुँनिश्वर ध्यावै, ब्रह्मा विष्णु महेश मनावें। 
सर्व शिरोमणि ग्रह है भारी, निशदिन ध्यावे सब नर नारी। 
सुमिरै जोहि सदा सुखकारी भूले ताकी करै खुवारी। 
सूरत सूत छाया को पूत, जाकी माया हैं अदभुत। 
सुर नर तासो कोउ न छानो, सदा सर्बदा पाको मानो। 
याकी कथा सुनो चितलाय, विघ्न टले सुख संपति छाय। 
गोऊं ग्रहज सदा सुखदाई, एक समै मिलि सभा बनाई। 
अदभुत सभा देखि मनहरणी, तासु प्रमोद कहा लौवारणी। 

अरस परस पर बातां करे, हित चित की उर मांहीधरे।
एक न कहो सुनो की नाही, कौन बड़ो है आपा मांही। 
निज मुख बडा कहत है सगरा, नहो माह मच्या है झगरा। 
सब ही कहे इन्द्र पे चलो जिसकी कहसी सोई भली। 
झगरत सकल इन्द्र पै गये, इन लखि इन्द्र सोच में भये। 
इन कह्यो न्याव हमारो कीजे, छोटो बड़ो हमें कहि दीजे। 
इन्द्र कहे मोकों नहिं खबर, मेरे भावे सब ही जबर। 
किस-किस को मैं बुरो बनाऊं, मेरे मुख सूं नहीं जनाऊं। 
विक्रमादित्य राजा पे जावो, दुनिया भर में नृप है ठावो। 
पर दुःख राजा काटन कहिये, तासोन्याव तुरत हिल हिये। 
चक्रवर्ती राजा है पंवार, सफरा नदी उजीणी धार। 
विक्रमादित्य राजा है खरो, जो होसी सो कहसी परो। 
तब चलि के राजा पे आये, बाहर भीतर वचन पठाये। 
ग्रहन कही तुम न्याव करावो, छोटों बड़ो हमें बतलावो। 
सुनी के नरपति बोल्यो ऐसे, याको न्याव करीजे कैसे। 
किसको कहूं बड़ो अरु छोटों, यह तो विघ्न बन्यो है खोटो। 
तब राजा इक बुद्धि उपाई, धातु वस्तु लावो रे भाई। 
कंचन रूपो तांबो ल्यावो, कासी पीतल लोह बिछावो। 
सीसो रांग जस्त ही जानो, नो धातु की नाम बखानो। 
आदि आसन सोना को करों, सब के हेटे लोहा धरो। 
पहले आसन आन बिछावो, पीछे उनको मांहि बुलावो।

नमस्कार नृप करतो भयो, ऐसे वचन सबन सों कहयो। 
अपने अपने आसन बैठो, छोटों बैठो सब सो हेठो। 
वचन छले राजा को लागे, याकी कथा सुनीज्यो आगे। 
सबके तले शनिश्चर बैठो, ओ तो इनमें अति ही छोंटों। 
कोंप शनिश्चर मन में मान्यो, इन राजा मोंय छोंटों जान्यो। 
अब इन की अरु मेरी बात, कैसे करूं मैं इनके साथ।
शनि कहे सुन नृपति सुजान, सब में कियों मोहि अपमान। 
कहा जानि मोंहि तले बिठायों, तो सब में सदा सवायों। 
चन्द्र रहे दिन होय सवा, सूर्य शुक्र बुध मास रहा। 
मंगल मास डेढ़ ही रहे, गुरु मास तेरा ही कहे। 
राहु केतु उल्टा ही कहे, दोनों मास अठारह रहे।
ऐसे ग्रह सर्व में कहूं, में तो साढ़ी सात बरस रहुं। 
मास तीसरा सिर पर आऊं, एसी साढ़सती भुगताऊं। 
देख पराक्रम सोंचो मन में, कौन बडों है राजा इनमें। 
कालों मैलों देखकर भूलों, कैसे करूं अब तोंको लूलो।
इतना काम मैं आगे किया, इसी भाँति सबको दुख दिया। 
मेरी द्रष्टि बुरी है राजा, कोपूं जाको करुं अकाजा। 
रघुवर लछिमण से दोऊभ्रता, तीन लोक के है ये त्राता। 
पार ब्रह्म पूरण अविनाशी, सकल सृष्टि बाकी है दासी। 
तिनसो भी मैटलियो नाहीं, विपत पड़ी अति बनके मांही। 
पहली द्रष्टि पड़ी छ मासा, हुवो राम तब ही वनवासा। 

और कियो हम एक अजोग, सती सीता को कियो वियोग। 
इतनी विपत राम पे परी, सती सीता को रावण हरी। 
चढयो सिया शिर कूडो कलंक रावण ले आयो निजलंक। 
रावण दुष्ट महा अतिबली, क्रूर कपटकर सीता छली। 
कुम्भकरण भाई है दूत, इन्द्रजीत सो बाको पूत। 
रावण राज देव को लीनो, अवल आपणो सगलो कीनो। 
इन्दर अगन पवन सब देव, विधना आदि करे सब सेव। 
बांध्या ग्रह खाट के पाये, जो चाहे सो नाच नचावे। 
एक दिवस आये हम पास, पड़ी दृष्टि तब भयो जु नास। 
राम लखन फोंजां ले आये, रावण कुल को सबै खपाये। 
अनेक काम मैं ऐसा करया, गुरुदेवन सोंनाहीं ड़रया। 
सावधान राजा तुम रहना, विपत पड़ेगी तू भी सहना। 
राजा कहे भविष्य जो हाई, जो कुछ लिखियो ईश्वर सोई। 
ता पीछे ग्रह घर को गये, वह तो सब ही हर्षित भये। 
एक शीनीजी गये नखुस्से, मन में भयो बहुत ही गुस्से। 
कितेक दिन तो सुख से बीते, राजा रहे सदा निश्चिते। 
साढ़े साती अब नृप को आई, बहकी बात करे छै कांई। 
शनिदेव की दृष्टि पारी है, राजा की कुछ बुद्धि हरी है। 
शनिजी होय सौदागर आए, अजब तरह के घोड़ा लाये। 
कच्छी तुर्की ताजी सोहे, अश्व देखि सब के मन मोहे। 
राज सभा में बात चली है कारुज आई अति भली है। 


हुक्म हुयो साणी तुम जावो, अश्व देखिके मोल करावे। 
साणी चाकर सब ही गये, अश्व देखि के हर्षित भये। 
साणी कहे आज तुम रहो, सब मोलजु हमसों कहो। 
सौदागर कहे मोल है भारी, कहाहूं आसंग नहीं थारी। 
तुमसों मोल खरो नहि परे, राजा बिना गरज नहि सरे। 
साणी देख्यो बात है खरी, तुरन्त नृपति सौ मालुम करीं। 
अच्छा अश्व नृपति है सारा, एक २ सों अधिक अपारा। 
जात घणेरी कही न जावे, कहा कहूं देख्या बन आवे। 
चढ़कर राजा तब खुद गये अश्व देखि मन हर्षित भये। 
उन में एक भंवर सा घोड़ो, पानी पंथ पवन सो जोड़ो। 
राजा कहे भंवर को लावो, वापर खसा जीण करावो। 
चढ़ के राजा फेरन लाग्यों, घोड़ो आगे बन में भाग्यो। 
पावनवेगराजा को खडयो, निर्जन वन में जायर पड़यो। 
घोड़ो गायब तबही भयो, राजा देखि अचम्भो रयो। 
संग न साथी कोई बन में, राजा फिरे अकेले बन में। 
भटकत-भटकत थाक्यो राय, तिरसां मारतां जिवड़ो जाय। 
जितने एक ग्वालयो, पेख्यौ, इनने उनको आवत देख्यो। 
आवत देखि ग्वालयो बोल्यो, किया फिरे छै बन में डोल्यो। 
राजा बोल्यो वचन सुनायो, अपनो आपो सकल छिपायो। 
राहगीर मैं भूल्यो गेलो, राह बताओ बस्ती मेलो। 


पानी पावो तिरषां मरुं, और बात मैं पीछे करुँ। 
तबै गवाल्यो पानी लायो, पानी पीय बहुत सुख पायो। 
करसों खोल अंगूठी दीनी, राजी होय गवाल्यो लीनी।
गाँव शहर को नाम बतायो, साथे होकर राह चलायो। 
चाल्यो-चाल्यो शहर में पैठा, श्रीपति शाह की हाटे बैठा। 
नगर चंपावती शहर सुधाम, तहं भूपाल मनोहर नाम। 
इनको देख शाह बतलायो, कोन लोग तूं कहां से आयो। 
शहर उजीणी में मैं रहूँ, क्षत्री वंश हमारो कहूँ। 
विक्रम मेरो नाम कहीजे, रोजी कारण यहां रहीजे। 
शाह कहीं तुम यांही रहो, काम काज सो मोसों कहो। 
और दिना शाह की हाटे, थोड़ो घणो नित्य ही बांटे। 
दांतण झारी इनको दई, उस दिन की बिक्री बहुत भई। 
भागी पुरुष इन्हें तब जान्यो, निश्चय मन में शाह पिछान्यो। 
कहे शाह तुम काम सुधारो, जीमण को मम घरे पधारो। 
साथे शाह घर ले गयो, माल्या मांहि पांतियो दियो। 
भली भाँति तैयारी करी, चौकी ऊपर थाल धरी। 
जीमत देख्यो अजब तमासो नृपति के मन में आयो हांसो। 
चन्द्रहार खूंटी पर झिले, चित्र मोर सो बाको गिले। 
जीम्या चूठया पूरण भया, शा: सिरदार मिल हाटे गया। 
महलां गई शाह की नार, खूंटि नहिं कंचन को हार। 


बांदी मेली शाह की लार, बीको लियो आपणो हार। 
बांदी जाय शाह सों कही, खूंटी हार कंचन को नहीं। 
बांदी कहे बीकाजी लियो, हमतो अब तुमसों कहिं दियो। 
शाह कही तुम कांई कियो, हार हमारी चोरी लियो। 
ई न कह्यो मैं लीनो नाहीं, वहीं देखिये घर के माहीं। 
बिजनस लियो नटो चमकांई, हम तुम दोय और कोई नाहीं। 
वृथा कलंक लगावो हमको, मानो कही कहा कहँ तुमको। 
औगुण कहा तुमरो करयो, देखो हार हमारों हरयों। 
बहुत भाँति से इनको कही, माना नहीं बात जो गही। 
पांच सात तब भेला भया, याको पकड़ राव ले गया। 
फौजदार को जाकर कही, हार लियो सो देवे नहीं। 
फौजदार तब ऐसे कही, हार परो दे रहसी नहीं। 
बिनां लिया मैं कांसू लाऊं कहो जेसी मैं सोगंध खाऊँ। 
परोहेदार जीव किमि डोले, भलोशाह झूठ नहिं बोले। 
बिना लियो मोहि चोरी आई, खोटी दशा में रोटी खाई। 
इयां कियां वो कैसे देवे, मार कूट बिन कैसे कहवे। 
बारे जाके बहुत डरावो, घुड़की देकर हार गिरावो। 
ऊँचो नीचो अति ही लियो, ओ तो वचन एक ही रियो। 
तब फौजदार राजा पै गयो, याको सब वृतांत ही कयो। 


राजा कहे हार कुण हरे, कौण नगर में चोरी करे। 
मेरे नगर चोर कहु लेखो, आस-पास चौकस कर देखो। 
कोतवाल भूपति से कही, चोर मिनख छानू रहे नहीं। 
भलो मिनख दिखे मन मांही, मेरी नजर चोर यो नांही।
बहुत भांति चौकस हम कियो, शाह कही बिजनस इन लियो। 
राजन वचन कहयो जब खरो, जावो चोर चौरग्यो करो। 
कोतवाल भंगी सो कही, हुकुम हुवो तुम डरो नहीं। 
लोग शहर को देखन आवे, भीड़ हुई मारण नहीं पावे। 
पकड़ बांध कर आगे लियो, बारे जांय चोरगियो लियो। 
अबतो भयो पराये सारे, काग कांवला चोचा मारे। 
मारग बहतो रोटी नाखे, टूक बटूक यो तब ही चाखे। 
लोग शहर का देखण आवे, सायब लेखे पाणी पावे। 
अबतो दुखी भयो है भारी, परबस परयो लगे नहीं कारी। 
बहुत दिवस भये ऐसे रहतां, घांची दीख्यो मारग बहतां। 
तब घांची के मन में आई, मेरे घर ले जाऊं भाई। 
और काम तो कछु न करसी, बैठी मेरे घाणी खड़सी। 
जब तेली राजा पे गयो, हाथ जोड़ ने ऐसे कयो। 
हुक्म होय चौरंग्यो ल्याऊं, मेरे घर की अन्न खुवाऊं। 
कोतवाल कहे तुम ले जावो, डरों मती तुमसों नहि दावो। 

तब तेली अपने घर ल्यायो, घाणी ऊपर आन बिठायो। 
अब तो बैठो घाणी फेरे, सब ही याके सांमे हेरे। 
राजा ध्यान धरे अबशनि को, चूकपरी मोसेवा दिन को। 
शनिदेव की दृष्टि फिरी है, राजा की कुछ दिशाफिरी है। 
एक समय वर्षाऋतु भारी, ताहि समें इन राग उचारी। 
राजकुमारी महलां खड़ी, वाके कान आवाज पड़ी। 
मन भावती यो फरमावे, ऐसा कौन शहर में गावे। 
रागिनी सुन प्रसन्न जो भई, बांदी बेग खबर को गई। 
फिर-फिर गली शहर में बूझे, आस-पास कोऊ नहिं सूझे। 
भटकत-भटकत शहर ढिंड़ोरे, पहुंचो जाय राग के धोरे। 
देख्यो इन घांची के घरे, बैठो राग चौरंग्यो करे। 
दौड़ी लखकर उस ही घरी, बाईजी सों मालूम करी। 
घांची के घर घाणी फेरे, बैठो राग चौरंग्यो करे। 
ऐसी सुनकर अनसन लियो, पोढ़ रही दांतण नहीं कियो। 
ईश्वर करसी सोई खरो, मैं तो मन में यो वर बरयो। 
सूती देख सबन यों कहयो, क्या बाईजी तोको भयो। 
दासी बांदी सब बतलावे, दांतन झारी प्याली लावे। 
उठो बाईजी दांतण करी, दिन चढ़्यो है पहर खरो। 
कहकर थाकी सबकी बाणी, निश्चय सूती खूँटी ताणी। 
तब दासी रानी सों कही, पोढ़ी बाई जागे नहीं। 
रानी सुनि के तुरत ही आई, आवत बाई तुरत जगाई। 

माता कहे तू क्यों उनमनी, तेरे चित्त में चिंता घणी। 
जो कोउ बचन कयो हो तोको, बाई तुरत बताओ मोको। 
दोहा-बाकी कांटू जीभड़ी, भूस भराऊ खाल। 
तू क्यों बाई उनमनी, कहदे सारो हाल।।
कछुनहि कियो हुकमनहिं लोप्यो, मोपे मेरो ईश्वर कोप्यो। 
कन्या कहे सुनो हो माता, कहा कहुं कुछ कयो न जाता। 
जोतुम मोको जीवत चावो, तो चौरंग्यो मोहि परणावो। 
माता कहे कहा ते कही, मैं गढ़ पति पर णाऊं तो सही। 
वाको परण कहा हो सोरी, ऐसी बात कहा कहे मोरी। 
कन्या बोली मधुरी बानी, सांच कहूँ निश्चै कर जानी। 
मेरो वचन सत्य मैं लखस्यूं, अनपाणी तब ही मैं भकस्यूं। 
राणी जाय राजा सों कही, बात कहूँ सो सुणज्यो सही। 
कहा कहूँ कछु कही न जाय, अनपाणी कुंवरी नहीं खाय। 
कुंवरी बात जो ऐसी कहीं, चौरंग्या ने परणूं सही। 
उसकी राग कहीं सुन पाई, कुंवरी के चितमांय सुहाई। 
राजा कहै गैली भई बाई, अकल गई है देखो भाई। 
राजा कहे कन्या समझावो, ख़ुशी रहो सोच मत लावो। 
ऐसी मन में तू क्यों आणे, तोकूं ब्याहूँ बड़े ठिकाणे। 
देश-देश की खबर मंगाऊं, जोड़ी देख र तोहि परणाऊं। 
कन्या कहे कहयो नहीं करू, बहुत करो तो जीवा मरूं।   

राजा कहे तोहे क्या सूजी, जांत-पांत में खबर न बूजी। 
तू कन्या है कुल की खोटी, लोक लाज मन में नहिं मोटी। 
राजा राणी बहुत कही, हट पकडयो सो माने नहिं। 
कन्या कहे बात मैं कहीं, प्राण तजूं या करस्यूं सही। 
कोप होय तब नृप यो कही, इनके भाग्य लिख्यो सो सही। 
राजा कहे घांची की लावो, चौरंग्यो ईने परणावो। 
घांची आय सलामी करी, राजा वचन कहयो उस घरी। 
तेरे घर चौरंग्यो जबरो, ताको ब्याहूँ मेरी कुंवरी। 
गंगो अरज करे है ऐसी हम तुम राजा निरपत कैसी। 
तुम राजा हम रैयत तुमारी, कैसे करूं ब्याह की त्यांरी। 
राजा कहे मती ना डरे, लेख लिख्यो सो कैसे टरे। 
फेर कही तुमरो क्या सारो हम जो कहते काम सुधारो। 
तब तेली अपने घर गयो, मन मैं सोच बहुत ही भयो। 
तेली जाय तैयारी करी, बींद सेवारत वाही घरी। 
तब राजा पंडित कंह टेरों, सावो देख्यो अति ही नेरो। 
पंडित तेड़ तैयारी करी, लगी चटपटी उस ही घरी। 
आला गीला बास कटाया, तोरण थाम तुरत करवाया। 
अब राजा के मंगल गावे, चढ़ चौरंग्यो तोरण आवे। 
तोरण मार चंवरी में बैठो, करयो हतलेबो बीनणी सेठो। 
करी मसखरी तब भौजाई, नीके जोड़ हथलेवो बाई। 

परन्यां पाछे महलां गया, सुख से लेकर पोढ़ रहया। 
अबै शनीश्चरु सपने आयो, दुख-सुख राजा कैसे पायो। 
हाथ जोड़ करू ऐसे कहयो, दुख संकट तो सब ही सहयो। 
शनी कहै मांग तोहि तूठो, मेरो वचन फिरे नहिं पूठो। 
राजा कहै वचन मोहि दीजे, मनवांछित कारज सब कीजै।   
शनिजी कहे वचन मम खरो, मनवांछित सब कारज सरो। 
हाथ पाँव तुरत ही दीने, राजा ऊठ कदम सो लीने। 
राजा एक अरज जब करी, सुनी शनीजी बात है खरी। 
मोको तो दुख दीन्हों अति ही, मिनख देही को दिज्योमती ही। 
शनिजी कहे सत्य तुम कही, बात तुम्हारी मानी सही। 
मेरी कथा अगर यह कहसी, ताघर शनी कभी नहि रहसी। 
निश्चय धारमोहि जो ध्यावे, दुख संकट कबहुँ नहिंपावे। 
चींटी चून नित्य मुख देवे, मनवांछित कारज कर लेवे। 
ऐसे कहे शनिधाम पधारे, राजा के सब काम सुधारे। 
राजा सूतो तिरिया साथ, डाल्यो वाके गले में हाथ। 
तिरिया जागी देख्या हाथ, रही अचंभे पूछी बात। 
राजा कहे सुनो तुम प्यारी, कही हकीकत पिछली सारी। 
और कहूँ क्या तोको घणी, नगर उजीणी को हुँ धणी। 
एसी सुनकर राजी भई, फिंकर चिन्ता सब ही गई। 
राजा कहे ख़ुशी तुम रहो यो विरतांत सकल सो कहो। 

प्रातः भयो फजर हो उठयो, शनिदेव राजा पर तूठयो। 
उतर महल से नीचे आयो, सबसे जाकर शीश नवायो। 
राजा होय अचंभे कही, मिनख नहीं ओ देवत सही। 
जितने बाई नीचे आई, सब ही याको पूछन धाई। 
आकर बैठी खूणां मांही शरमा मरती बोले नांही। 
सखी सयानी पल्लो गहयो, तब पति को विरताँत कयो। 
सब ही कयो भागतो ही भारी, मनसा पूरी ईश्वर थारी। 
बारे जाय राजा सो मिल्यो, उरसों लाय रयो अतिझिळ्यो। 
राजा अपने पास बिठाये, हाथ पाँव कहो कैसे आये। 
हाथ जोड़ के ऐसे कही सुणज्यो, बात हमारी सही। 
शनि देव को कोप भयो हो, मोको इतनो दुःख दियो हो। 
शनीदेवजी कीनी माया, हाथ पाँव फोरन ही आया। 
राजा सुण अचम्भे रयो, इन अपनो विरतांत कहयो। 
फेर कही सुनिये महाराजा, नगर उजीणी को हूँ राजा। 
ऐसी सुणकर फेरु मिल्यो, उरसो लाग रहयो अतिझिळ्यो।
ऊपर लेय बरोबर बैठो, आप कहो मैं बैठू हेटो। 
अरस परस मनुहार करे, हितचित की उरमाही धरे।
राजा मन में राजी भयो, यो सबसे वृतांत कहयो। 
राजा राणी हर्षित भया, सर्व बात का आनन्द थया। 
राजा राणी सबै बखाने, बाई ब्याही बड़े ठिकाने। 


करे उछाह बहुत दिल छाजे, आगे पीछे नौबत बाजे। 
अब तो बात शहर में छाई, राजा कीनो चोर जंवाई। 
बहुत जना ऐसे बतलाया, हाथ पाँव कहो कैसे आया। 
ऐसी बात शाह सुण पाई, मनमें डरयो बहुत ही भाई। 
शाह कबीलो भेला भया, सब ही मिल रावले गया। 
जाय कही सीख मोहिदीजै, घर दूकान की कूंची लीजै। 
राजा कहे भला क्यूं जावो, कहा दुःख सो मोहिबतावो। 
हाल हकीकत सबही बरन्यो, राजा भयो आपके परण्यो। 
शाह हकीकत पिछली कही, अबै हमारो रहबो नहीं। 
ख़ावन्दी सूं कहकर जाऊं, अबै रहूँ तो मैं दुःख पाऊं। 
राजा कहे उन्हीं पे जावो, बाप गुनो माफ करवावो। 
राजा क्यों सो हि उन कियो, हुकम जाय शीशधर लियो। 
उन पै जायर राड़ निवाई, जहाँ बैठा था राजा जंवाई। 
शाह कहे खून में कीनों, झूंठो कलंक तुम्हें जो दीनो। 
शाह कहे मोहि गर्दन मारो, नहिं तो दीजे देश निकारो। 
हाथ जोड़ के सामों खड़ो, शाह कहे मोहि तोपां जडो। 
राजा कहै दोषी तुम नांही, मोपे पड़ी शनी की छांही। 
कोप शनी को मुझ छायो, इतना दुख जबही मैं पायो। 
अब तो मेरो संकट गयो, कैसो थो अरु कैसे भयो। 
राजी रही मतीडर राखो, काम काज सो हम सौभाखौं। 

हाथ जोड़ कर शाह कही, हमको निहचो आवे नहीं। 
मन मेरो जबही रह धीमो, मेरे घर मिजमानी जीमो। 
राजा कहे खरचअतिभारी, तुम राजी तो करी तैयारी। 
हुकम बजाय शाहघर गयो, मन में बोत खुशहाली भयो। 
अब जीमण की करो तैयारी, जिनस बणाई अति ही सारी। 
शाह कहे अब बेग पधारो, साथ पधारो सब सिरदारों। 
तब राजा शाह के गयो, उस ही ठोर पांतियो दियो। 
चन्दन चौकी आगे करी, रूपा की सब थाली धरी। 
शाहजी हाथ धुलावे हितसो, जिनस परोसे अपना चितसो। 
लाडू घेवर पेड़ा चौखा, खुरमा बन्या अति अनोखा। 
और जलेबी पुड़िया पेठा, शकर पारा अति ही मीठा। 
मुरकी और सेव ही जांण, पूरी कचोरी अति ही जाण। 
बरफी और अकबरी जान, घेवर सब में सरस बखाण। 
और इन्द्रसा मीठा गणा, रुचरुच जीमें सब ही जाण। 
खीर बहुत ही मीठा पूवा, सरससिवाल दीवठा हुया। 
मिठड़ी गुंजी फीणी जोर, मोतीचूर मगद है और। 
बण्यो चूरमो अति ही घणो, बूरो मिसरी बहुत विधितणो। 
सीरो लूंजी चावल दाल, राम खीचड़ी बोतर साल। 
लाप्सी और तैयारी कीवीं, मांग-मांग सब जिनसां लीवी। 
खीर खूब है बूरो मांही, सिखरण बनां सरे है नांही। 


गिरी छुहारा मेंवातणां, दाख चिरोंजी बहु विधि घणां। 
पिस्ता आदि बनी तरकारी, सुन्दर सरस बनी है सारी। 
षटरस के सब व्यंजन करे, सब ही आन थाल में धरे। 
अधिक अथाणो अति ही लावे, सबही रुच-रुच भोजन खावे। 
कैर करेलो पापड़ बरी, अपने हाथ शाह जी धरी। 
ओर जीनस को छेह न पार, सागसलूना अति ही अपार। 
जीमे चूठे अति ही जोर, निगल्यो हार सो उगल्यो मोर। 
राजा कहे सुनो नर नार, मंडयो मोर सो गल्यो हार। 
चित्र और भीत पे पेख्यो, सब ही हार उगलतां देख्यो। 
तुम तो किनो हमको चोर, फिरी दशा तब उगले मोर। 
हमतो राख्या तुमसो छानो, तभी कहूँ तो कैसे मानो। 
सबही कयो धन्य महाराज, तुम सम सतबादी नहीं राजा। 
जीम्या चूंठयां चलू करायो, दौड़ शाहजी पूछन आयो। 
लूग एलची पान सुपारी, निजर करी कछु मोहरां सारी। 
शाह कहे एक अरज सुनीजे, मेरी बेटी आप परणीजे। 
राजा वचन कहत है ऐसे, तेरी बेटी परणू कैसे। 
शाह कहे मोहि राजी राखो, मेरी बेटी दासी राखो। 
तब राजा शाह के परण्यो, पूरब रीत सकल ही बरण्यो। 
श्री कंवरी साणी को नाम, विक्रम भूप भयो है श्याम। 
इक कंवरी दूजा है साणी, अब तो भई दोय पटरानी। 

घांची को अति आदर कीनो, अनधन माल बहुत सो दीनो। 
बाग़ बगीच नित ही जावे, गोठ गूगरी सदा करावे। 
ऐसे रहत बहुत दिन भया, एक दिन राजा पे गया। 
जायर कही सीख मोही दीजे, बीते दिन बिलंब ना कीजे। 
राजा कहे सीख क्यो लीजे, घर तुमरो यहां पर रीजे। 
इनने कहयो रयां नहीं स, देश मुलक में जायां सरै। 
तब राजा को बिदा जो कीना, हाथी अश्वबोतही दीना। 
चाकर फौजां सबही जणां, रथ पालकी अति ही घणां। 
दानदायजो अति ही दीनो, शिष्टाचार बात बोत ही कीनी। 
मिलकर राजा बिदा जु भया, अपने देश उजीणी गया। 
गाव-गाव में मंगल गावे, सब ही लोग सामें ले आवे। 
अब तो आया शहर किनारे खबर पड़ी शहर में सारे। 
हाकमं चाकर सामां धाये, फौजदार उमरा वहि आये। 
लोग शहर के सब ही आये, राजा को लेकर कब धाये। 
सारे शहर उछाव है भारी, घर-घर गावे मंगल नारी। 
हाथी चढ़यो बहुत दिल छाजे, आगे पीछे नोबत बाजे। 
इसी भाँति सब दाखल भया, राजा लोग महलां में गया। 
निजर निछावर सब ही कियो धन्य भाग मोहिदर्शन दियो। 
बैठ सिंहासन चंवर ढुलावै, सब सो राजा यूं फरमावै। 
शनीदेव मोटो है गिरे, नबो ग्रहों में सब सो सिरे। 


मैं इनको अपमान करयो हो, मौपे इतनों दुख पडयो हो। 
दुख संकट तो सब ही सयो, अपनों सब विरतांत कयो। 
राजा कहे बहुत दुख पायो, महर भई तुम पै जो आयो। 
सब ही शनी की पूजा करो अपनों संकट गयो है परो। 
सारे शहर डूंडी पिटवाई, पूजा करो शनी की भाई। 
सारै शहर में पूजा करी, राजा कहे सो बात है खरी। 
ऐसो काम शनी जी कियो, बहुत बरस लग ख़ुशी रयो। 
रोज ध्यान शनी को करसी, तो मनवांछित कारज सरसी। 




                 दोहा

कायस्थ नाथू भावकुल नगर नागपुर वास। 
निशिदिन ध्यावे शनि को, पुरे मन की आस।

जोरवाल मम नाम है, हुकमराय सूत जान। 
काको जीवणदास है, ताकी गोद बखान।।

उमर वर्ष बत्तीस की, ग्रन्थ कियो कविराज। 
फलदायक शुभ शनि को, पढ़न सुनन के काज।।

शनि की कथा स्नेहु से, पढ़े सुने नर नार। 
अष्टसिद्धि ताको मिले, निश्चय चित में धार।।

सुने सुनावे शनि कथा, गावे जो चित लाय। 
सत्य वचन भाखे सदा, ताको संकट जाव।।

मैं निजमति सम यह कथा, कही सकल विस्तार। 
भूल चूक जी होय सो, लीज्यो कवि सुधार।।

ज्यों की त्यों वर्णन करो, तामें झूठ न मुर। 
विक्रम नृप इतिहास की, भई कथा भरपूर।।

सम्वत पूरण बीस है, तापर वेद बखान। 
सोमवार सुद पंचमी, ज्येष्ठ मास की जान।।

          ✽ कथा समाप्त ✽ 

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